Tuesday, January 6, 2015

वरण करना चरण 4

आप न तो परमात्मा बन सके न आत्मा !!
वरण  करना अर्थात  जैसे  की पोस्टिंग ?  मुझे लगता  कर्मकांड करने वाला   इसे ईजिली समज  जायेगा  !!  आत्मा का वरण करना   पड़ता है !!!अगर जोमेट्री पढ़े हो तो  प्रमेय सिध्ध करते है न ? मा न लो को के पृथ्वी चतुष्कोण है फिर प्रश्न करते करते आप सिध्ध कर सकेंगे कि पृथ्वी चतुष्कोण नही है !! वैसे करते ही जाओ और प्रभु सिद्ध होंगे ।
चलो यह कठिन है मान ले !! किन्तु आप किसीको तो कह सकते है न !! तो यह दुनिया  चलाने वाला आपके हिसाब से कोई भी  है उसे ढूंढ  निकालो !! नहीं तो खुदतय करलो की यही वो है नाम दो !! ईश्वर अल्लाह इसु वगैरह धर्म या सायन्स बनते है न? ऐसे ही आप भी कोई अपना तर्क प्रमणित करो !! इसका आपको वरण करना होगा !!
वरण  तो करना ही पड़ता है !! अगर श्रद्धावान नहीं हो !! केवल तर्क वादी हो !! तो सीधा लॉजिक ये बनता है की किसी को भी प्रारम्भ मान लेना ही होगा !! कोई ईश्वर मूर्ति कल्पना !! किसीका भी वरण करो !!
मुझे कर्मकांड पूजा से यह बात अच्छी तरह समज आ जाती है।  कोई भी यज्ञ पूजा में  मुख्य आचार्य होता है. उपाचार्य होता है  गाणपत्य होता पाठक जप करता वगैरह.



तो यहाँ आप देखेंगे ब्राह्मण तो होते ही है लेकिन जिसका वरण  आचार्य का संकल्प से किया वो अपना काम करता है  ! वैसे जप का वरण है वो जप का ! ब्रह्मा बनाया वह ब्रह्मा का !!
इसी बात का अर्थ मैंने यहाँ किया है !! जिससे ऐसा अर्थ बनेगा  की आत्मा का वरण  मैंने परमात्मा का अंश किया है !! हमें खुद करना पड़ेगा  !! आत्मा गोल है या प्रकाश !! कैसा है !!
देखो वो बालक पूछता है  न आत्मा कैसा है तो उपनिषद में जवाब आता है नेति नेति !!
यह तो खुद को ही अनुभव करने का है !!
इस तरह आत्मा समज में आता है ! समजाया जाता नहीं है !!
इसीलिए उपनिषद में कहा है ये न तो प्रवचन से शब्दों से सुनने से या किसीभी उपाय से समाज में नहीं आएगा !! खुद को ही इसका वरण करना पड़ेगा !!
 बड़ेबड़े पंडित खुद खो जाते है !! अरे कोई कोई तो पूरा संप्रदाय बना लेता  है !! ऐसे ही तो बनते जाते है धर्म और भरम भी !!
....  फिर भी अगर यह नहीं कर पाते तो आगे के चरण में और उपाय है !!

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