Tuesday, January 6, 2015

सर्वत्र हरिदर्शनम् चरण 8

यह सब प्रभु की रचना है !! सर्वत्र हरिदर्शनम्
सर्वत्र  बोधम् !!
कही भी देखो सबका सबसे छोटा भाग अणु  !!! उसमे भी न्यूट्रॉन !! अरे घूमता हुआ इलेक्ट्रोन !! जैसे छोटा सूर्य मंडल !! एक ही बात सभी और !!
  कुछ  देखत है तुझ में तुझको 
कुछ देखत है शरीर 
ખાલી જગ્યા ખોળીએ, કણી મૂકવા કાજ
ક્યાંયે જગકર્તા વિના, ઠાલુ ના મળે ઠામ…

अब जो सर्वत्र  ही प्रभु है तो मै    ही कहा रहा !!
 और अगर अहंकार से मै  बोलने जाता हु  तो मुज अहम को बाद करके बाकि सब !! अहम उन (बाद i.e. omit) किया हुआ बाकि जो सब रहा अहम उन  (अहमून !!) !!
अहमून हरी तव नाम  !!
यह तो हुई न फिलोसोफी  !!इसी लिए कुछ धरम  वाले सर्वत्र हरी दर्शन नहीं समज सकेंगे !! यह ज्ञान की बात है !!
इसीलिए मुझे कहने दो 
ज्ञानेन जायते  दर्शनम् 
बीना  ज्ञान दर्शन  की कोई गुंजाईश नहीं रहती !!
अरे यह मन की दुनिया भी देखो !!
अणु  कोष  (ब्रह्मादि ) नर्तन करी 
मन (राधा) को  ध्यान (चकित) करे  वो देख !!


जैसे जैसे आप चिंतन करोगे आप को समज में आ जाएगा धर्म सब मनुष्य की महान खोज है !!और सबके सब जब मेरा धर्म सही है इस बात को लेकर संख्या बढ़ाने के चक्कर में अर्ग्युमेंट झगड़ा करते दिखाई देंगे तब तुम्हे इन लोगो पर रहम आएँगी !!एक बार राजकारण और धर्म के चक्कर को समझ लेंगे तो मेरी ये बात सरल समज में आ जाएंगी !!ईश्वर तो धर्म से बहोत बड़ा है !!

मैं तू ये सब  और ये सब जिसमे है वो और इसी से भी आगे जो कुछ भी है वो !!
अब भला कैसे समजाउ।

न जाने परमात्मा ने मुझसे करवाया है !!
 चल मन अब मुजे दोस्ती वाला वोही गीत गाने दे ।
जिसने सब को रचा अपने ही हाथ से उसकी पहचान हु मैं तुम्हारी तरहा !
ज्ञान को सम्हालने के लिए ही स्वाध्याय है । 
यह अभ्यास का माहात्म्य है।
अभ्यासेन तू कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।
जो जो क्षेत्रमे खो जाते है वह धीरे धीरे विशाल दिखाई देने लगता है ।..
આ તો સૂક્ષ્મ માં રહેલી વિશાળતા છે.
...એક डॉक्टर


ज्ञान होते  ही  प्रश्न  शांत  हो  जाता  है  l



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