Tuesday, January 6, 2015

आत्म वान भवतु चरण 3

आत्मा को समजो  !! आत्म वान  भवतु !! सूरज का एक गोल !! उससे निकलती किरणे !! जैसे परमात्मा और आत्माए !!
ये भी समजो

क्या आत्मतत्व है ?इसका भी मेग्नीट्यूड है !!



 वैसे आत्मा परमात्मा से जुड़ा है जैसे सुरज की किरणे !!
मेरे पिताजी ने एक भजन में लिखा है ये तो पंचमहाभूत का एक तुत  बना है !!
अगर सरलता से समजे तो आत्मा तो परमात्मा का अंश ही हुआ !! और जो माया बाकी रही है उसमे पंचमहाभूत है जिससे देह बना है !! अर्थात देह तो कुदरत का भाग हुआ !! मनुष्य के पास तो मन ही बचा !!
तन माया आतम तो हरिजो !! मन में मनुज फसायो !!




अयं आत्मा न प्रवचनेन लभ्य ....
इसे न तो प्रवचन से या प्रत्यक्ष समजाया  जा सकता  है !! यह तो केवल स्वयं चिंतन से समज में आ सकता है !!

ये तो बुझाई है  जब जानता  है न जानता  है कोई !
किरण बन के जो छूटा दिया देखता  होगा !!
वरण शब्द समझना है तो कर्मकांड में ध्यान से देखो । ब्राह्मण पूजा शांति में आचार्य उपाचार्य ब्रह्मा गणपत्य जपका होम करता के कैसे वरण करता है ।और जो जो काम उनका होता है वह यजमान के लिए करते है ।यहां भी खुद को ही आत्मा का वर्ण करना पड़ता है ।

जब मालूम हो जाता है की मै  तो एक दिए की किरण हु उसी समय तो वह खुद उस जगह से हट  जाता है जैसे बुझ गया दिया !!
अखा ने सही कहा है जिसका वो खुद भाग है कैसे वर्णन  कर सकेगा !! हरी में रहे  वह कैसे हरिका वर्णन  कर सकता है  !! यहाँ तो खुद को ऑमित करने वाली बात बन जाती है !!(अहम को बाद किया हुआ जो बाकि है वह सब अहम उन  !!)
 बुद्ध मन इसु अल्ला तू हरी
अहमून जाये कहा कहा ये हरी !!
अगर यह भी नहीं  बन  सकते  तो एक  ओर  ऑप्शन  है !! गो  नेक्ष्ट  !!



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