चरणम् पितु श्च !! पितृ को तो हम जानते है !! उनका ही जिनेटिक है हम !! अरे गुण सद्गुण डायबिटीज प्रकृति उन्ही से तो आ मिली है !! जैसे गुलाब के पौधे की एक डाली तोड़ के मिट्टी में गाड़ दी । तो उस डाली पर धीरे धीरे गुलाब होते है ।मुझे एक बार जाना पड़ा था समारम्भ में !! निरीश्वरवादी थे !! ऐसे कई लोग आज मिल जाते है जो कोई भगवान धरम संप्रदाय के चक्कर में नहीं होते है !! बस ऐसे ही ग्रुप में मैंने हिन्दू फिलोसोफी की एक अद्भुत बात बताई !! ३३ करो देवता की फिलोसोफी वाला हिन्दू माता पिता को भी भगवन मानता है !! उसे कोई और भगवन के मंदिर मस्जिद जाना जरुरी नहीं है !!
सभी देवो में माता पिता भी देव ही है !! मई तो कहता हु जो बी अपने माता पिता को देव मानता है वो भले ही किसी भी संप्रदाय का हो वो हिन्दू फिलोसोफी का ही है !!
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