कैसे समजे परमात्मा को !! मै क्या करू !! जीवन में क्या करू !! शास्त्रो में रूचि नहीं !!
बस मेरा विस्वास मेरी सोच यह कह रही है जो मिला है जवाब !!
जब भी आकाश की और देखता हु ! बस ऐसा लगता है वेद कुरान गीता सब के सब सामने तो है !! और इसी चीज़ ने तो बांध लिया है अध्यात्म रास में !! कमाल तो देखो दुनिया में सबसे नजदीक की कोई बात है तो वो ईश्वर ही है !!
अगर आप है ही तो बन सकते हो परमात्मा !! ट्राय करिये !!!
ईश्वर एक है और उसके सिवा कोई जगह खाली नही है ।
मै ये भी नहीं कह रहा हु फॉलो मी !! जस्ट ट्राई टू अंडरस्टेंड !!
आत्मा को समजो !! आत्म वान भवतु !! सूरज का एक गोल !! उससे निकलती किरणे !! जैसे परमात्मा और आत्माए !!
ये भी समजो
क्या आत्मतत्व है ?इसका भी मेग्नीट्यूड है !!
वैसे आत्मा परमात्मा से जुड़ा है जैसे सुरज की किरणे !!
मेरे पिताजी ने एक भजन में लिखा है ये तो पंचमहाभूत का एक तुत बना है !!
अगर सरलता से समजे तो आत्मा तो परमात्मा का अंश ही हुआ !! और जो माया बाकी रही है उसमे पंचमहाभूत है जिससे देह बना है !! अर्थात देह तो कुदरत का भाग हुआ !! मनुष्य के पास तो मन ही बचा !!
तन माया आतम तो हरिजो !! मन में मनुज फसायो !!
अयं आत्मा न प्रवचनेन लभ्य ....
इसे न तो प्रवचन से या प्रत्यक्ष समजाया जा सकता है !! यह तो केवल स्वयं चिंतन से समज में आ सकता है !!
ये तो बुझाई है जब जानता है न जानता है कोई !
किरण बन के जो छूटा दिया देखता होगा !!
वरण शब्द समझना है तो कर्मकांड में ध्यान से देखो । ब्राह्मण पूजा शांति में आचार्य उपाचार्य ब्रह्मा गणपत्य जपका होम करता के कैसे वरण करता है ।और जो जो काम उनका होता है वह यजमान के लिए करते है ।यहां भी खुद को ही आत्मा का वर्ण करना पड़ता है ।
जब मालूम हो जाता है की मै तो एक दिए की किरण हु उसी समय तो वह खुद उस जगह से हट जाता है जैसे बुझ गया दिया !!
अखा ने सही कहा है जिसका वो खुद भाग है कैसे वर्णन कर सकेगा !! हरी में रहे वह कैसे हरिका वर्णन कर सकता है !! यहाँ तो खुद को ऑमित करने वाली बात बन जाती है !!(अहम को बाद किया हुआ जो बाकि है वह सब अहम उन !!)
बुद्ध मन इसु अल्ला तू हरी
अहमून जाये कहा कहा ये हरी !!
अगर यह भी नहीं बन सकते तो एक ओर ऑप्शन है !! गो नेक्ष्ट !!
परमात्मा बन जाओ !!कोई न कोई तो है !! वायु का गोल है !! या कोई बोल है या कोई शक्ति है !! जो आरम्भ से है !! यह भी आज भी अनजान केवल श्रद्धा या तो तर्क से डिफाइन है !! जाओ बन जाओ वो आप !! नहीं न !!यहाँ तो अपने अपने प्रमेय प्रस्थापित करके बने रहे है धर्म और संप्रदाय !!बेचारे भले या अबुध या ज्ञानी भी इसी चक्कर में घुस जाते है !! इसी लिए अच्छा ये भी होगा की दूसरे स्टेप पर जाये !!बिगबैंग ?
मैंने एकबार कोई शिख पंडित का प्रवचन सूना था !! वो कहते थे ईश्वर को सच में कोई नहीं जानता है !! सही बात है !! देखो प्राचीन ग्रन्थ वेद वाणी !! " को अद्धा वेद को जानिह-------" !! अरे परम व्योम में रहा कोई अन्य जीव प्राणी एलियन भी नहीं जनता होगा !!
अरे कुछ धर्म रिलिजियान वाले तो भूल गए की क्या करना है !! पुरे विश्व में मेम्बरशिप बढ़ाने में जुटे है वो !!
राजकारण की पार्टियो की तरह !! आतंक वाद !!पागल बन गए है जैसे!!
अरे आप जिसके पार्ट हो उसको कैसे देख सकोगे भला ?
we are a part of the nature and nature using us too !! like trees and other leaving non leaving things !!the knowledge is covered by ignorance !!! rope & snake are different !! in darkness ignorance may misguide you to mean a rope a snake !! darkness i.e. the ignorance !!
reality is a subject of the mind.Even in dream we are there.so we were part of that.in the life also we are a part !! and in life we
know all have birth and death too !!! so to be there and to be destroyed is a part of the life.But we have mind with lots of curiosity to know this all !!Yet we have no knowledge of the total of the stars in this universe !! we are still at this position with the subject name science,philosophy etc.
there are so many other living things too !!
अरे हम तो एक भाग है इस महान के !! क्या बन शक्ति है परमात्मा !!
then go to next
आत्मवान बनो !!
ये भी एक कोशिश है मैंने जो समजा !!
इसी लिए अच्छा ये भी होगा की दूसरे स्टेप पर जाये !!आत्मवान बनो !!
आप न तो परमात्मा बन सके न आत्मा !! वरण करना अर्थात जैसे की पोस्टिंग ? मुझे लगता कर्मकांड करने वाला इसे ईजिली समज जायेगा !! आत्मा का वरण करना पड़ता है !!!अगर जोमेट्री पढ़े हो तो प्रमेय सिध्ध करते है न ? मा न लो को के पृथ्वी चतुष्कोण है फिर प्रश्न करते करते आप सिध्ध कर सकेंगे कि पृथ्वी चतुष्कोण नही है !! वैसे करते ही जाओ और प्रभु सिद्ध होंगे ।
चलो यह कठिन है मान ले !! किन्तु आप किसीको तो कह सकते है न !! तो यह दुनिया चलाने वाला आपके हिसाब से कोई भी है उसे ढूंढ निकालो !! नहीं तो खुदतय करलो की यही वो है नाम दो !! ईश्वर अल्लाह इसु वगैरह धर्म या सायन्स बनते है न? ऐसे ही आप भी कोई अपना तर्क प्रमणित करो !! इसका आपको वरण करना होगा !!
वरण तो करना ही पड़ता है !! अगर श्रद्धावान नहीं हो !! केवल तर्क वादी हो !! तो सीधा लॉजिक ये बनता है की किसी को भी प्रारम्भ मान लेना ही होगा !! कोई ईश्वर मूर्ति कल्पना !! किसीका भी वरण करो !!
मुझे कर्मकांड पूजा से यह बात अच्छी तरह समज आ जाती है। कोई भी यज्ञ पूजा में मुख्य आचार्य होता है. उपाचार्य होता है गाणपत्य होता पाठक जप करता वगैरह.
तो यहाँ आप देखेंगे ब्राह्मण तो होते ही है लेकिन जिसका वरण आचार्य का संकल्प से किया वो अपना काम करता है ! वैसे जप का वरण है वो जप का ! ब्रह्मा बनाया वह ब्रह्मा का !!
इसी बात का अर्थ मैंने यहाँ किया है !! जिससे ऐसा अर्थ बनेगा की आत्मा का वरण मैंने परमात्मा का अंश किया है !! हमें खुद करना पड़ेगा !! आत्मा गोल है या प्रकाश !! कैसा है !!
देखो वो बालक पूछता है न आत्मा कैसा है तो उपनिषद में जवाब आता है नेति नेति !!
यह तो खुद को ही अनुभव करने का है !!
इस तरह आत्मा समज में आता है ! समजाया जाता नहीं है !!
इसीलिए उपनिषद में कहा है ये न तो प्रवचन से शब्दों से सुनने से या किसीभी उपाय से समाज में नहीं आएगा !! खुद को ही इसका वरण करना पड़ेगा !!
बड़ेबड़े पंडित खुद खो जाते है !! अरे कोई कोई तो पूरा संप्रदाय बना लेता है !! ऐसे ही तो बनते जाते है धर्म और भरम भी !!
.... फिर भी अगर यह नहीं कर पाते तो आगे के चरण में और उपाय है !!
सफल लोगो को देखो !! महा पुरुषो महान जीवन देखो !! पन्थो महानं !! क्यों की तू अकेला नहीं जो जी रहा है !! ऐसा तू नहीं है जिंदगी पूरी करने वाला है !! तेरे आगे कई लोग इस पृथ्वी पर आये और जीवन को सफल किया है !! तू अगर कोई भी रास्ता या जीवन जीने का तरीका नहीं ढूंढ सकता है तो तेरे सामने सफल लोगो का जीवन है !! बस उनकी राह पर चले जा !! बना दे किसीको अपना मॉडल !!! बना कर चलता जा !! ये भी तो सरल तरीका है !!
मैंने कई ऐसे महापुरुष देखे है जिससे मुझे समाधान मिला है !! डरपोक निराशावादी आप को कन्फ्यूज़ करने वाले बहोत मिलेंगे लेकिन डरो मत !! महान आज भी है !!
कई महान व्यक्तियों के इतिहास हमें बहोत कुछ शिखा देते है !! मीरा की भक्ति !!
आप निश्चय करे देखे सफल महापुरुषोंके जीवन को !! चल ले उनके चले हुए मार्ग पर !
शास्त्रो को देखो !! इसके पीछे उन लोगो की महेनत सोचे !! कुरान,बाइबल ,अवेस्ता,गीता वगैरह !! एक बार पढके तो देखो !! आप जो सोच रहे है उससे तो कई ज्यादा इन लोगो ने सोचा है !!इसी लिए शास्त्रो को प्रमाण मान लो !! शास्त्रं प्रमाणं
श्रद्धा वान बनो !!मैंने तो ये सृष्टि बनाई नहीं है !! अगर आप ने बनाई हो तो मालूम नहीं !! और अगर आप मानले की इसे बनाने वाली कोई भी ताकत है तो उस ताकत पर श्रद्धा रखनी ही पड़ेगी !!यहसब बनाके वो क्या करना चाहता है ? क़यामत करेगा क्या ? प्रलय करेगा ? हज़ारो साल के बाद उसका क्या प्लान है ? यह सब प्रश्न का एक ही जवाब है उसका संकल्प है !! जो भी हो उसकी मर्जी !!उसके संकल्प में श्रद्धा रखनी ही होंगी !!
हमसे तो बड़ा उसका संकल्प है और हमारा संकल्प तो उसके संकल्प का पार्ट है !!
बस परमात्मा के संकल्प में श्रद्धा रहे !!
मेरा मत !! ये क्या ? मेरा ही मत सही है तो क्या दुसरो का गलत है !!देखने जाओ तो ममत तो एक प्रॉडक्ट है !!और अपने ही मत पर अड़े रहना ममत है !! दूसरा क्या अमत है ? किन्तु अन्य के मत के सामने आपका मत क्या है यह बात बनती है !! इसी लिए तो राजकारण में सर्व सम्मति की फिलॉसॉफ़ी चली है !! किन्तु इसके भी आगे कुदरत है !! जो अचानक कुछ न कुछ कर बैठती है !! यही ईश्वर के संकल्प की अनुभूति है ! बस इसीलिए ही मेरा कहना है ईश्वर के संकल्प में श्रद्धा रख्खो !!